शनिवार, 29 नवंबर 2008

दगड्यौ सुणा

दगड्यौं सुणा अबी-अबी ये ब्लोग बणोंदी-बणोंदी म्यरा फोने की घंटी बजी पेली त मैं फोन नी थो उठोणूँ,पर बाद मा जब मैंन फोन उठाई त मैं काट्णक तैयार नी थो। अब तुम सोचमा पड़गी होला कि क्ये नी थो काटणूँ ? त सुणा जनी मैंन फोन उठाई तनी मेरी दिदी कि अवाज आई कि त्वैक ब्वारी माँगली हमून, बस मैं पूछण लगीग्यों कि कनी च क्या च, कनी दिख्येंदी होली, म्येरी जुकुड़ी मा कना-कना मिठा सुबिना औंण भेगीनी

तुमतें क्या बतोंण। दगड़्यौं बात जनी तुमन सोची तनी नी च, बात इनी च कि अबी मैंन अफरू गौं याद करी अर अबी गौं कू मैंक न्यूतु ऐगी। बस मैं सणी अफरा गौं जाणकू याक बानू मिलिगी। जू म्यरा जुकुड़ी मा सुबिना आईन सि गौं का फूँगड़ों का, गौं का धारा का, ग्वोरू भैंस्यों दड़ी बण मा जांणका, दगड़्यौं दड़ी लुकी-छुपि बीड़ी प्याणका सुबिना था।त दगड़्यौं तुम लोग बी अफड़ा गौं याद करी तें द्यखा सेत तुमतें बी न्यूतु ऐ जाऊ।

चला गौं चला

चला गौं चला-------

चला दिदों चला गौं चला

अफड़ी भूमि पर कुछ दिन बितोला

दिदी-भूलौं दड़ी हम बी कुछ दिन ख्यला

जख ब्वै रूणी हमारा खातिर

जख ब्वै द्यखणी हमारू बाटू

जख बाबाजी बैठ्याँ तिबारी मा

टक लगैक तै बाटा मा

चला भूलौं चला गौं चला

ख्यला हम बी हिंदोआ बणों मा

गौं कि याद जब औंदी कबी

त रूँदू मन, मने मा

सोचमा पड़ी जाँदू मैं

कि हौंदू जू अफड़ा गौंमा बी रोजगार

त औंदू न कबी बी परदेश मा।।