शनिवार, 21 फ़रवरी 2009
चला जी----------
चला जी मैं बी लिकरा दगड़ा मा
छोड़ा यूँ बूढ़-बूढ़्यों रगड़ा मा
चला जी मैं बी लिकरा दगड़ा,
जोला द्वी परदेश बाजार दगड़ा मा
आला जब तुम ड्योटी बिठी
बणेक रखलू मैं, अलग-अलग खाणूं
खोला बैठिक दगड़ा मा
चला जी--------------,
रंदा तुम तख परदेश
लग्यूं रंदू मैं यख धाणीं पर
खुदेंदा तुम तख मैं बिगर
खूदेंदू मैं तुम बिगर फोंगड़्यों मा
नाश ह्वेगी म्यरा शरीर कु यख,
खिलोला प्रेम का गुल तख दगड़ा मा
छोड़ा यूँ बूढ़-बूढ़्यों जू लग्यां रंदा
चला जी----------------------,
छोड़ा यूँ तें जू लग्याँ रंदा-
दिन-रात झगड़ा मा,
चला जी मैं बी लिकरा दगड़ा मा
छोड़ा यूँ बूढ़-बूढ़्यों रगड़ा मा।।
गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009
कुछ भेद भी छौं बतोंणू -
संज्ञा | सर्वनाम | विशेषण | क्रिया | क्रिया-विशेषण |
बच्चा | त्योरू | चमकीलु | लिखणु | जादा |
मनखी | तैकू | ग्वोरू | उठणु | भोल |
छौरा | मैंन | कालु | बैठणु | आज |
नौंनी | त्वेन | लड़ाकू | खांण | ब्वाँ |
दगड्या | तेन | जादा | पींण | ऐंच |
बुढ्या | तु | बुड्ढी | सिखौंणू | कम |
टिरी | सू | बिगड़्यूँ | पकड़ी | तेज |
घनसाली | म्यरो | आवारा | रोणू | पीछाड़ी |
मैगाधार | हमारू | | हँसणू | अग्वाड़ी |
मुन्डेती | तुमारू | | सुणण | सुबेर |
काखड़ी | यू | | सुणोंण | |
पीछाड़ी | | | जांण | |
सुबेरूँ | | | ओंण | |
मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009
कब होला आजाद?
लोग बोलदन कि राजा कु राजपाट चली गैई, पण मैं तें त इनु नी लगदू की राजाशासन समाप्त ह्वे गैई। मैं सणी त इनी लगदू कि पैली त याक क्षेत्र कु याक राजा होंदू थ्वो। पर आज त हर क्षेत्र मा द्वी-द्वी, तीन-तीन राजा छन। जौन अब अफड़ू नौ बदली तें नेता रखली और अब सी नेता बणी तें छन लुटणा। पैली याक क्षेत्र तें याक ही राजा कु डर रंदू थ्वो, पण अब त हर नेता कु डर सतौंदी रंदू कि अगर मैं ते तें बोट दैंदों त यू मैं तें सतौंदू। म्यरा सोचण सी बदली कुछ नींन । बदली छन त तौंका कपड़ा। पैली मुकुट, राजाशाही कपड़ा पैरिक, साथ मा तलवार धरिक, दगड़ा मा सैनिक लीक राज करदा था अब सी खादी की टोपली धरिक, खादी का कपड़ा पैरिक, दगड़ा मा द्वी-चार गुंडा धरिक छन राज कना। तैं राजशासन थ्वो अब नेताशासन च। ब केवल तौंका शासन कु नौं बदली और कुछ बी नी बदली। तैं बी शोषण होंदू थ्वो आज बी होंण च लग्यों। तैं बी गरीब मनखी ही पिश्येंदू थ्वो और आज बी गरीब मनखी ही च पिश्येंणू और भविष्य म बी गरीब मनखीन ही पिश्यांण। यू होंण तैं तला जैं तला हम अफु नी जाग्याँ। जैं तला हमुन यी लुटेरा नी पछाणीन, जैं तला हमुन यूँ पर भरोसू कन तैं तला यूँन हम लुटदी रणां। त सोचा कि ब्याली बी हम शोषक ही था और आज बी हम शोषक ही छाँ।
त कब होला आजाद?
शनिवार, 14 फ़रवरी 2009
कुछ अलग-----
संज्ञा-
कै मनखी, चीज या जगा का नौं क संज्ञा बोलदन।
जनू- राहुल, मुंगरी, टिहरी
उदा-१-राहुल खड़ू च।
२-मुंगरी पकीं च।
३-टिहरी डुबीगी।
सर्वनाम-
नौं का बदला उपयोग होण वाला शब्दों तें सर्वनाम बोलदन।
जनू- तैन, त्वैन, येकू, तेकू,सू
उदा-१- सू लाखड़ा च फाड़णू।
विशेषण-
जु शब्द संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतोंदन, तोंक विशेषण बोलदन।
जनू- ग्वोरू, मीठू, चार
उदा-१- सू मनखी ग्वोरू च।
क्रिया-
जे शब्द सी कै काम होणकू पता चललू , तैक तें क्रिया बोलदन।
जनू- चलणू, उठणू, बैठणू, खाणू, पीणू
उदा-१-राम चलणू च।
२-राहुल खाणू च।
क्रिया-विशेषण-
जु शब्द क्रिया की विशेषता बतोंदन, तोंक तें क्रिया-विशेषण बोलदन।
जनू- कम, ऐंच, अबी
उदा-१-खाणा कम खावा।
२-सू ऐंच च जायों।
संज्ञा सर्वनाम विशेषण क्रिया क्रिया-विशेषण
बच्चा सू चमकीलु लिखणु तेज
मनखी तु ग्वोरू उठणु कम
छौरा तेन कालु बैठणु ऐंच
छौरी त्वेन लड़ाकू खाणू ब्वाँ
दगड्या मैंन पीणू आज
बुढ्या तैकू सिखौंणू भोल
छ्वटू त्योरू पकड़णु जादा
शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009
मनखी कू विकास
हम सणी विकास शब्द कू पूरू अर्थ समझ्यों चेंदू। सामान्यतौर पर विकास शब्द कू अर्थ धन-दौलत कू विकास मांणेजांदू, जबकि येकू अर्थ मनुष्य कू पूरू विकास माण्यूचेंदू। जैम धन-दौलत कू विकास भी याक हिस्सा होंदू।
पण विकास कू असली अर्थ होंदू , मनुष्य कू सामाजिक , राजनीतिक और आर्थिक(धन-दौलत) विकास। जब बी क्वी मनखी विकास कू अर्थ सोचदू त तें सणी शरीर, शिक्षा जना कई मुद्दों पर सोच्यों चेंदू। पिछला कै बर्षों बिठी मनखी कू विकास कू जू मुद्दा फैली, सू सैत इथगा पेली कबी नी फैली। पेली का लोग धन- दौलत का विकास सणी ही मनखी कू विकास समजदा था पर अब लोग ये कू पूरू अर्थ समजीगैन की धन-दौलत सी ही कै बी मनखी कू विकास नी ह्वे सकूदू । तैक तें ते सणी अफड़ू पूरू विकास कन पड़लु।
जनू कि- शिक्षा कू विकास, मन कू विकास, अफड़ा आस-पास कू समाज कू विकास,।
बोलणा कू अर्थ यू च कि याक राज्य कू विकास, याक जिला कू विकास, याक पट्टी कू विकास या याक गौं कू विकास तब तक नी ह्वे सकदू जब तक कि तें गौं कू हर मनखी कू विकास नी होलू।