त कब होला आजाद ?
लोग बोलदन कि राजा कु राजपाट चली गैई, पण मैं तें त इनु नी लगदू की राजाशासन समाप्त ह्वे गैई। मैं सणी त इनी लगदू कि पैली त याक क्षेत्र कु याक राजा होंदू थ्वो। पर आज त हर क्षेत्र मा द्वी-द्वी, तीन-तीन राजा छन। जौन अब अफड़ू नौ बदली तें नेता रखली और अब सी नेता बणी तें छन लुटणा। पैली याक क्षेत्र तें याक ही राजा कु डर रंदू थ्वो, पण अब त हर नेता कु डर सतौंदी रंदू कि अगर मैं ते तें बोट दैंदों त यू मैं तें सतौंदू। म्यरा सोचण सी बदली कुछ नींन । बदली छन त तौंका कपड़ा। पैली मुकुट, राजाशाही कपड़ा पैरिक, साथ मा तलवार धरिक, दगड़ा मा सैनिक लीक राज करदा था अब सी खादी की टोपली धरिक, खादी का कपड़ा पैरिक, दगड़ा मा द्वी-चार गुंडा धरिक छन राज कना। तैं राजशासन थ्वो अब नेताशासन च। ब केवल तौंका शासन कु नौं बदली और कुछ बी नी बदली। तैं बी शोषण होंदू थ्वो आज बी होंण च लग्यों। तैं बी गरीब मनखी ही पिश्येंदू थ्वो और आज बी गरीब मनखी ही च पिश्येंणू और भविष्य म बी गरीब मनखीन ही पिश्यांण। यू होंण तैं तला जैं तला हम अफु नी जाग्याँ। जैं तला हमुन यी लुटेरा नी पछाणीन, जैं तला हमुन यूँ पर भरोसू कन तैं तला यूँन हम लुटदी रणां। त सोचा कि ब्याली बी हम शोषक ही था और आज बी हम शोषक ही छाँ।
त कब होला आजाद?
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