गुरुवार, 4 जून 2009

एक कोशिश

दोस्तों गढ़वाली भाषा के विकास के प्रति मेरी कोशिशों में से एक कोशिश यह है । और यह में कर पाया हूँ श्री भीष्मा कुकरेती जी के सहयोग से।
इस पुस्तक के लेखक को नमन करते हुए आरम्भ करता हूँ।
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गढ़वाली व्याकरण की रूप रेखा

अबोधबंधु बहुगुणा( लेखक)

प्रकाशक-------

गढ़वाल साहित्य मण्डल

बी.१२८, सरोजिनी नगर,

नई दिल्ली-३

गढ़वाली व्याकरण की रूपरेखा

विषय प्रवेश

यह सौभाग्य की बात है कि गढ़वाल की २५ लाख जनता की भाषा गढ़वाली की लिपि देवनागरी है। इससे हिन्दी के पाठक के लिए गढ़वाली एक अपरिचित भाषा के रूप में सामने नहीं आती। १२वीं सदी से इस शताब्दी के आरम्भ तक कुछ नागरी वर्ण गढ़वाली में भिन्न रूप में लिखे जाते रहे हैं। इ का रूप ०,० था और र का न। इसी प्रकार ख को ष लिखा जाता रहा। इसमें ल के नीचे बिन्दी वाले वर्ण ल़ ( जिसे हम मूर्दन्य ल कह सकते हैं) का विशेष महत्व है। इस शताब्दी के आरम्भ के प्रथम चरण तक यहाँ विद्यारम्भ औ न म सी ध ( औमनमः सिद्धं) से होता रहा। और बारहखड़ी पढ़ने का एक विचित्र तरीका था। बच्चे च चा चि ची आदि न पढ़ कर विजनकी च, कुन्दनु चा, बाञिमति चि, दैणै ची, उड़ताले चु, बडेरे चू , एकलग चे, दो लग चै, लखन्या चो, दुलखन्या चौ, श्रीबिन्दु चं, दुवास बिन्दु चः इस प्रकार पढ़ा करते थे।

गढ़वाली में आधुनिक ढंग से सन् १८७५ के आसपास से साहित्य लिखा जाना आरम्भ हुआ। परिणामतः आज इसमें लगभग ढाई सौ से अधिक छोटी बड़ी प्रकाशित पुस्तकें हैं। आज गढ़वाल के साहित्यकारों की यह पीढ़ी अपने प्रदेश के लोक साहित्य का संकलन कर भारती का भंडार भर रही है। और साथ ही स्वतंत्रता के बाद काव्य के कई नये मनोहर प्रसून इसमें खिले हैं। यही नहीं आज हिन्दी के भारतेन्दु काल की तरह जोश लिये हुए इस प्रदेश की सरकार से यह भी मांग है कि गढ़वाली को संविधान में पृथक प्रादेशिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाय। अस्तु , गढ़वाली साहित्य को उसके व्याकरण के माध्यम से समझने में सरलता होगी। रचना और गटन में गढ़वाली यद्यपि हिन्दी और संस्कृत की बेटी सभी प्रादेशिक भाषाओं की ही भांति है तथापि उसकी अपनी पृथक विविध मौलिकताएँ हैं और उसका पद-विकास भिन्न है।

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1 टिप्पणी:

parashar ने कहा…

aapka sochnaa aur or logo ka bhee mannaa hai ki garhwali bolee ko vashaa ka darjja mile.. per vashaa ka ke liye mere pahaad me kayee pandit paidaa hogaye hai .. jo ek achee surwaat bhee hai.. per kaya kindriya sarkaar ye sun paayegee...
emaplae ..

bhot purb rajyapal sudarshan aggrwaal ne ek a pahaadee ( Non Gadwaalee) ke dwaraa archit garhwaali bolee ki lipee pershutut kar ke apnaa naam surkhiyo me sumaar karfe yaa thaa ... kyaa aap aur me yese he hastiyo ke hatho apne bolee ka bhabishyaa daa-o per lagaate rahebgai.
parashar