सोमवार, 15 जून 2009

संज्ञा

संज्ञा

संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते हैं जिससे नाम का बोध हो। संज्ञायें तीन प्रकार की होती हैं।

१) व्यक्तिवाचक संज्ञा- गढ़वाली में व्यक्तिवाचक संज्ञायें प्रायः किसी आधार को लिये हुए होती हैं। कोई शिशु जिस मासस मौसम या परिस्थति में जन्म ले उसके अनुसार ही उसे प्रायः चैतु, सूर्जी जैसी संज्ञायें मिल जाती हैं। जैसे कोई ठिगने मोटे शरीर का डंफले से आकार का हुआ तो उसे डंफा कहने लगेंगे। कुछ नाम देवताओं के प्रसाद स्वरूप रखे जाते हैं जैसे-भैरवदत्त, दुर्गाप्रसाद।

२) जातिवाचक संज्ञा- जिन शब्दों से एक प्रकार के प्रत्येक पदार्थ का बोध होता है उन्हें जातिवाचक संज्ञा कहते हैं। गढ़वाली में बहुत सी जातिवाचक संज्ञायें स्थानों में बसने के कारण बनी हैं। जैसे- थापली में रहने से थपलियाल, पोखरी में रहने से पोखरियाल आदि।

३) भाववाचक संज्ञा- जिन शब्दों से गुण दशा या व्यापार का बोध होता है वे भाववाचक संज्ञा कहलाते हैं। गढ़वाली में भाववाचक संज्ञाओं का एक अद्भुत भंडार है किन्तु हिन्दी के आई, ई, त्व, ता, पन, वट, हट, आदि प्रत्ययों वाली होने की भांति उनका पहचाना जाना सरल नहीं है। आण, आल़ि, ल़ि, आदि कुछ प्रत्यय हैं जिनसे उन्हें पहचानने में सरलता होती है। इसमें कुछ विलकुल विचित्र भाववाचक संज्ञायें हैं। बारीकी से देखा जाय तो किसी भोज्यपदार्थ को लगातार खाते रहने के बाद उसके प्रति आने वाली अरूचि बिखलाण, किसी तरल पदार्थ में से बार-बार मंथन करके तत्व निकालने को कतोला-कतोल आदि।

कुछ अन्य भाववाचक संज्ञायें नीचे दिए गए शब्दों से बनती हैं।

१) जातिवाचक संज्ञा से-

जातिवाचक संज्ञा भाववाचक संज्ञा

पंडित पंडितै

दुसमन दुसमनै

छोकरा छोर्क्यूल

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